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वि॒भ॒क्तारं॑ हवामहे॒ वसो॑श्चि॒त्रस्य॒ राध॑सः। स॒वि॒तारं॑ नृ॒चक्ष॑सम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vibhaktāraṁ havāmahe vasoś citrasya rādhasaḥ | savitāraṁ nṛcakṣasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒ऽभ॒क्तार॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। वसोः॑। चि॒त्रस्य॑। राध॑सः। स॒वि॒तार॑म्। नृ॒ऽचक्ष॑सम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अगले मन्त्र में सविता शब्द से ईश्वर और सूर्य्य के गुणों का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जैसे हम लोग (नृचक्षसम्) मनुष्यों में अन्तर्यामिरूप से विज्ञान प्रकाश करने (वसोः) पदार्थों से उत्पन्न हुए (चित्रस्य) अद्भुत (राधसः) विद्या सुवर्ण वा चक्रवर्ति राज्य आदि धन के यथायोग्य (विभक्तारम्) जीवों के कर्म के अनुकूल विभाग से फल देने वा (सवितारम्) जगत् के उत्पन्न करनेवाले परमेश्वर और (नृचक्षसम्) जो मूर्त्तिमान् द्रव्यों का प्रकाश करने (वसोः) (चित्रस्य) (राधसः) उक्त धनसम्बन्धी पदार्थों को (विभक्तारम्) अलग-अलग व्यवहारों में वर्त्ताने और (सवितारम्) ऐश्वर्य्य हेतु सूर्य्यलोक को (हवामहे) स्वीकार करें, वैसे तुम भी उनका ग्रहण करो॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को उचित है कि जिससे परमेश्वर सर्वशक्तिपन वा सर्वज्ञता से सब जगत् की रचना करके सब जीवों को उसके कर्मों के अनुसार सुख दुःखरूप फल को देता और जैसे सूर्य्यलोक अपने ताप वा छेदनशक्ति से मूर्त्तिमान् द्रव्यों का विभाग और प्रकाश करता है, इससे तुम भी सबको न्यायपूर्वक दण्ड वा सुख और यथायोग्य व्यवहार में चला के विद्यादि शुभ गुणों को प्राप्त कराया करो॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सवितृशब्देनेश्वरसूर्य्यगुणा उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा वयं नृचक्षसं वसोश्चित्रस्य राधसो विभक्तारं सवितारं परमेश्वरं सूर्य्यं वा हवामहे आददीमहि तथैव यूयमप्यादत्त॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विभक्तारम्) जीवेभ्यस्तत्तत्कर्मानुकूलफलविभाजितारम्। विविधपदार्थानां पृथक् पृथक् कर्त्तारं वा (हवामहे) आदद्मः। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपः स्थाने श्लोरभावः। (वसोः) वस्तुजातस्य (चित्रस्य) अद्भुतस्य (राधसः) विद्यासुवर्णचक्रवर्त्तिराज्यादिधनस्य च (सवितारम्) उत्पादकमैश्वर्य्यहेतुं वा (नृचक्षसम्) नृषु चक्षा अन्तर्य्यामिरूपेण विज्ञानप्रकाशो वा यस्य तम्॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषोपमालङ्कारौ। मनुष्यैर्यतः परमेश्वरः सर्वशक्तिमत्त्वसर्वज्ञत्वाभ्यां सर्वजगद्रचनं कृत्वा सर्वेभ्यः कर्मफलप्रदानं करोति। सूर्य्योऽग्निमयत्वछेदकत्वाभ्यां मूर्त्तद्रव्याणां विभागप्रकाशौ करोति, तस्मादेतौ सर्वदा युक्त्योपचर्य्यौ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेष व उपमालंकार आहेत. जसा परमेश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ असून सर्व जगाची निर्मिती करतो व सर्व जीवांना त्यांच्या कर्मानुसार सुखदुःखरूपी फळ देतो व सूर्यलोक आपल्या तापाने व छेदनशक्तीने प्रत्यक्ष द्रव्यांचे विभाजन करतो आणि प्रकाशही देतो तसा तुम्ही माणसांनी यथायोग्य व्यवहार करावा. ॥ ७ ॥